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March 23, 2024 at 1:38 pm #1932Up::2
- हिंदू धर्मशास्त्रों, पुराणों और आख्यानों में ‘गन्धर्व’ शब्द से जिस व्यक्ति विशेष या समुदाय विशेष को संबोधित किया जाता है। उन्हें ही आज ‘LGBTQIA+’ समुदाय कहा जाता है। यहाँ हर अंग्रेजी अक्षर यहाँ तक की ‘+’ का भी अर्थ है।
- L lesbian, G gay, B Bisexual, T transgender , Q queer, I intersex, A asexual और + बाकी बचे लोगों को सम्मिलित करता है।
इन्हें उभयलिंगी, समलैंगिक, किन्नर के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है। बहुत सारे पौराणिक कथाओं में मनुष्यों में समलैंगिकता को देवताओं अथवा अन्य अनैतिक कृत्यों को जिम्मेदार माना जाता है।
भारतबर्ष में मौजूद कथाओं के अलावा विश्व भर में भी LGBTQIA+ से जुड़ी हुई काफी कथाएँ प्रचलित हैं।
समाज में इस समुदाय के लोगों को हिय नजर से देखा जाता है, उनके लिए कईं फूहड़ और असम्मानित शब्दों का उपयोग किया जाता है। उन्हें समाज की मुख्यधारा से बिलकुल अलग रखा जाता है। बावजूद इसके एक बात जो हम झूठला नहीं सकते कि वो भी मनुष्य है और हम में से ही एक है। उनके अधिकारों की रक्षा करना, उन्हें समाज की मुख्य धारा में शामिल करना हमारा नैतिक कर्तव्य है।
जब हम पौराणिक कथाओं का अध्ययन करते हैं तो हम पाते हैं कि बहुत बार बहुत सारे कार्यों को सम्पन्न कराने के लिए भगवान् ने किस किस तरह की लीलाएँ रचीं और उन लीलाओं ने किस तरह एक बहुत बडे़ पुण्य कार्य में भागीदारी की, कुछ प्रमुख प्रसंग इस प्रकार है।
रामायण से जुड़ी मान्यता:
जथा जोगु करि विनय प्रनामा
बिदा किए सब सानुज रामा
नारि पुरुष लघु मध्य बड़ेरे
सब सनमानि कृपा निधि फेरे
कैकेयी को दिये अपने वचन के कारण जब राजा दशरथ ने अपने प्राणों से अधिक प्रिय पुत्र मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र को सीता सहित 14 बर्ष का वनवास दिया तो धीरे धीरे ये खबर पूरे अयोध्या में फैल गयी। पूरी अयोध्या के महिला पुरुष और किन्नर शोक में डूब गये, जब कैकयीनन्दन भरत प्रभु श्रीराम को मनाने चित्रकूट गयेे तो सारे अयोध्यावासी भी उनके साथ गयेे, लेकिन रामजी ने अयोध्या के स्त्री पुरुषों को लौट जाने का आदेश दिया, लेकिन किन्नर जो कि न पुरुष थे और न ही स्त्री वही रह गए। क्योंकि रामजी का आदेश तो स्त्री और पुरूषों के लिए था, किन्नरों के लिए।
लंका विजय करके भगवान् राम जब अयोध्या की ओर लेटे तो रास्ते में उन्हें किन्नर मिले। जब राम जी ने उनसे न जाने का कारण पूछा तो उन्होंने पूरा कारण बताया।
रामजी ने उनकी तपस्या और त्याग से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान कि आज से किसी के यहाँ भी कुछ शुभ कार्य होगा, वहाँ किन्नरों को बुलाना अनिवार्य होगा। उनके द्बारा दी गई दुआओं से मनुष्य मात्र का कल्याण होगा।
यह परंपरा तब से आजतक चलीं आ रही है। हम देख सकते हैं कि किस तरह भगवान् राम ने किन्नरों को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने का काम किया।
इसी तरह महाभारत में भी कुछ वृतांत है जो इस प्रकार है।
अर्जुन
विश्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर में से एक अर्जुन के जीवन से जुड़ी कहानियाँ हैं। महाभारत में अपने अज्ञातवास से पहले वासुदेव श्रीकृष्ण की सलाह पर अर्जुन अपने देव पिता इन्द्र से मिलने गयेे।
जैसा कि ज्ञात हैं कि चूंकि पांडु को श्राप मिला था कि वो किसी स्त्री से संभोग नहीं कर पायेगा, लेकिन ऋषि दुर्वासा द्धारा कुंती को दिये वरदान के कारण देवताओं की स्तुति कर कुंती ने पुत्रप्राप्ति की थीं।
जब अर्जुन स्वर्ग पहुंचा तो वहाँ कि एक अप्सरा उर्वशी अर्जुन को देखते ही उसके प्रेम में पड़ गयी। उसने तरकीबें लगाकर अर्जुन को रीझने की लाख कोशिशें की लेकिन अर्जुन तस से मस न हुआ। उर्वशी ने क्रोध में आकर अर्जुन को कुछ समय के लिए स्त्री बनने का श्राप दिया। फिर अर्जुन अज्ञातवास में विराट के राजा की बेटी उतरा और उसकी सखियों को नृत्य सिखातें। श्राप के कारण अर्जुन का शरीर स्त्री का हो गया लेकिन आत्मा पुरुष की ही रहीं।
उलूपी नामक नाग राजकुमारी से अर्जुन का विवाह हुआ, जिसके इरावन नामक पुत्र हुआ। इरावन एक महान योद्धा था।
महाभारत के युद्ध के दौरान इरावन ने विवाह करने की अनुशंसा की, उसने तर्क दिया कि नागों में कोई अविवाहित नहीं मरता है। तब श्रीकृष्ण ने मोहिनी रूप रख इरावन से विवाह किया। मान्यता अनुसार किन्नर स्वयं को इरावन की विधवा मानती है और बर्ष में एक दिन उसकी मृत्यु का शोक मनाती है।
शिखंडी
काशी के राजा की तीनों बेटियां अंबा, अंबिका और अंबालिका का अपहरण जब भीष्म उनके स्वयंवर से कर लाये और अपने दत्तक भाइयों चित्रांगद और विचित्रवीर्य से कराना चाहा तो सबसे बड़ी अंबा इसके लिए तैयार नहीं हुई, क्योंकि वो मन ही मन राजा साल्व से प्रेम करतीं थीं। लेकिन क्योंकि वो उनका अपहरण कर लाये, इस कारण अब कोई उनसे विवाह नहीं करेगा। अंबा ने भीष्म से रीति रिवाजों के साथ विवाह करने का आग्रह किया जिसे भीष्म ने अपने ब्रह्मचर्य संकल्प के कारण ठुकरा दिया। आवेश में आकर अंबा ने भीष्म को श्राप दिया कि वो एक दिन उनकी मृत्यु का कारण बनेंगी।
प्रतिशोध के उपाय की खोज में वो भगवान् परशुराम के पास पहुंचीं, जिन्होने उसे शिव की तपस्या करने की सलाह दी। अंबा ने ऐसा ही किया और एक लंबे समय के बाद भोलेनाथ ने उसकी तपस्या से प्रसन्न उसे इच्छानुरूप वरदान दिया और भीष्म की मृत्यु का संकल्प लेते हुए अंबा ने देहत्याग किया।
अगले जन्म में वो राजा द्रुपद की बेटी के रूप में जन्मीं जो शिव के वरदान स्वरूप एक स्त्री के रूप में जन्मीं। लेकिन उसका लालन पालन एक पुरूष के जैसा हुआ।
महाभारत के युद्ध के दौरान दसवें दिन शिखंडी अर्जुन की सारथी बन जाता है, चूंकि शिखंडी एक महिला थीं। इसलिए भीष्म अर्जुन की तरफ कोई हथियार नहीं चलाते हैं और अर्जुन पितामह भीष्म को बाणों से घायल करता हुआ उन्हें शैय्या पर ला देता है और इस तरह शिखंडी जो कि पूर्व में अंबा थीं, भीष्म की मृत्यु का कारण बनतीं है।
प्रयागराज में हुएं महाकुम्भ में किन्नरों को भी स्नान करने का अवसर प्रदान किया गया। किन्नरों का एक अखाड़ा बनाकर महामंडलेश्वर भी नियुक्त किया गया। बहुतेरे मंदिरों में भी किन्नर बधाई गीत गाते बजाते मिल जाते हैं।
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