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March 23, 2024 at 1:40 pm #1933Up::2
The English author, Mark Twain, once wrote:
‘Benaras is older than history, older than tradition, older even than legend and looks twice as old as all of them put together’.
बनारस कहें, काशी कहें या वाराणसी। हर नाम का अपना पुट है , अपना महत्व है, अपना प्रभाव है।
मान्यता है कि काशी तो स्वयं त्रिनेत्र भगवान भोले शंकर की बनायी हुई है, यह भी मान्यता है कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी हुई है।
काशी का इतिहास इतना पुराना है कि आजतक इतिहासकार एकमत होकर उसका एक मिलाजुला वर्णन प्रस्तुत नहीं कर पाये है। हर इतिहासकार अपनीं मान्यताओं के हिसाब से अलग अलग
प्रमाणों के आधार पर वर्णन करता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर न जाने कितनी बार बना है और आंक्रताओं ने ना जाने कितनी बार बनाया गया है, लेकिन आखिरी बार इसे औरंगजेब द्बारा तोड़ा गया था और रानी अहिल्याबाई होल्कर द्बारा इसका पुनर्निर्माण करवाया गया था। पंजाब के तत्कालीन महाराजा रणजीत सिंह ने इसके शिखरों को सोने से मढवाने के लिए एक टन सोना दान दिया था।
कहते हैं जिस व्यक्ति का अंतिम संस्कार गंगा के घाट पर काशी में हो जाता है। वो आत्मा जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त कर लेतीं है।
महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश भी बनारस से बारह किमी दूर सारनाथ में दिया था। कबीर और रविदास जैसे महाकवियों का जन्म भी बनारस में हुआ। गोस्वामी तुलसीदास ने भी रामचरितमानस की रचना यहीं की। आदि शंकराचार्य ने भी भगवान शिव की पूजा के लिए मठ की स्थापना की। जैन धर्म के एक तीर्थंकर का जन्म भी यही हुआ। साथ ही पुराणों में उल्लेखनीय सात पुरियों में भी काशी एक थीं। शहनाई वादक बिस्मिल्ला खां भी काशी के निवासी थे।
हम कह सकते हैं कि काशी का इतिहास चाहे जितना पुराना हो, उसकी भूमि ने सभी धर्मों का समान रूप से पोषण किया है।
काशी अपने में सभ्यताओं को समेटे हुए हैं। बनारसी पान जगत में प्रसिद्ध है। काशी का रेशम उद्योग खासकर साड़ी भी हर महिला की पसंद है। इसके अलावा भी काशी स्वतंत्रता संग्राम के कुछ आंदोलनों का केंद्र रहीं हैं। शिक्षा में भी बीएचयू जैसे संस्थान है।
२०१४ में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी के वाराणसी से सांसद चुने जाने के बाद उन्होंने वाराणसी पर विशेष ध्यान केंद्रित किया और यहाँ की समस्याओं को जमीनी स्तर पर देखा।
काशी विश्वनाथ मंदिर जो कि भगवान शिव के १२ ज्योर्तिलिंगों में से एक है यहाँ स्थित है। या यूँ कहें कि काशी आने वाला हर व्यक्ति इस मंदिर में अपनी आस्था के कारण खींचा चला आता है।
लेकिन कुछ समय पहले तक काशी विश्वनाथ मंदिर जाने का रास्ता बेहद संकीर्ण गलियों से होकर जाता था जिससे होने वाली परेशानियों से श्रदालुओं की आस्था आहत होती थी। इन्हीं सब परेशानियों के कारण सरकार ने एक कोरिडोर बनाने का फैसला लिया जिससे काशी आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु गंगा में स्नान करके बिना परेशानी के बाबा विश्वनाथ के दर्शन कर सकें।
बर्ष २०१९ में काशी विश्वनाथ कोरिडोर की नींव रखी गई और बेहद तीव्र गति से इसका कार्य हुआ। लेकिन यह कार्य इतना आसान नहीं था क्योंकि जमीन अधिग्रहण बड़ी चुनौती थी। गंगा के घाट से सीधे मंदिर के रास्ते में १४०० से अधिक घर, दुकानें थी। ३०० से अधिक संपत्तियों का अधिग्रहण और क्रय ३३९ करोड़ की राशि से किया । इस दौरान उन तंग गलियों में 40 से अधिक मंदिरों का भी पता चला जो घरों धर्मशालाओं में छिपे थे और बहुत कम लोग इस बारे में जानते थे।
२१ महीने के कम समय में २०२१ में इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री जी मोदी के द्बारा किया गया। यह इसका पहला चरण था जिसकी लागत ३४५ करोड़ आई है। पूरा प्रोजेक्ट करीब ८०० करोड़ रुपये का है। २०१७ में जो परिसर ६०००० वर्ग मीटर में फैला हुआ था वो आज ५००००० वर्ग मीटर में फैला हुआ है। यह कोरिडोर तीन भागों में बंटा हुआ है। पहला भाग ललिता घाट से दूसरे भाग शंकराचार्य चौक तक जाता है। तीसरा भाग मुख्य मंदिर परिसर है। चार दरवाजे हैं जिसमें से गेट चार से सर्वाधिक श्रद्धालु प्रवेश करते हैं।
गदोलिया चौराहा जिसे बनारस का दिल भी कहा जाता है, के ठीक बीच में नंदी बाबा स्थित है, उनके सिर की दिशा में बाबा विश्वनाथ विराजित है। यहाँ एक विशाल पार्किंग का निर्माण किया गया है।
कोरिडोर में २३ बिल्डिंगों का भी निर्माण किया गया है जो इसके ३० प्रतिशत भाग में बनाईं गयी है, इनमें फूड कोर्ट, सिटी म्यूजियम, दर्शन गैलरी, भोगशाला, मुमूक्क्षू भवन, फैसिलिटी एरिया और भी इमारतों का निर्माण हुआ है।
भारत माता और रानी अहिल्याबाई होल्कर की मूर्ति भी परिसर में स्थापित की गयी है। मंदिर की मूल संरचना में कोई बदलाव नहीं किया गया है। कोरिडोर के निर्माण के बाद तकरीबन १३ करोड़ श्रद्धालु बाबा विश्वनाथ के दर्शन कर चुके हैं।
इसके अलावा एक टेंट सिटी का निर्माण भी किया जा रहा है। नमो घाट का निर्माण अंतिम चरण में है। माँ गंगा नदी की, उनके घाटों के साथ ही नगर की सफाई व्यवस्था भी अच्छी हो गई है। २४ घंटे बिजली पानी, रेलवे स्टेशन का विस्तार, एयरपोर्ट का निर्माण, रिंग रोड और बाईपास के निर्माण जैसे कार्य भी वाराणसी में हुए हैं। कुल मिलाकर कोरिडोर के निर्माण के साथ ही पूरे नगर को ऐसा विकसित किया जा रहा है कि आने वाले किसी भी शख्स को परेशानी नहीं हो और वो महादेव के दर्शन अच्छें से कर सकें।
दशाश्वमेध घाट पर होने वाली सायंकालीन माँ गंगा की आरती हमें ईश्वर के और समीप ले जाती है। मणिकर्णिका घाट पर होने वाले अंतिम संस्कार हमें मोहमाया से भरे इस नश्वर शरीर की वास्तविकता का अहसास कराते हैं और आत्मा परमात्मा के संबंध को और प्रगाढ़ करते हैं।
ऊँ नमः पार्वती पतये हर हर महादेव
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