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March 21, 2024 at 8:22 pm #1920Up::2
मचकुंड, मचकुंड या मुचुकुंड, राजस्थान के सबसे पूर्वी जिले धौलपुर में स्थित अरावली पर्वत के भगवान बसा में एक सुप्रसिद्ध हिंदू धर्म स्थान है। जैसे देवयानी सभी तीर्थों की नानी कहलातीं है, वैसे ही मचकुंड को भी सभी तीर्थों का भाँजा कहा जाता है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग से 3 किमी अंदर स्थित है।
मचकुंड को लेकर बहुत सारी किवदंतियों की तलाश है। लेकिन फिर भी श्रीकृष्ण और कालयवन से जुड़ी कथा को शाश्वत माना जाता है। क्योंकि इसमें श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंद के 51वें अध्याय और विष्णु पुराण के पंचम अंश 23वें अध्याय के 18वें श्लोक में बताया गया है।
तेनानुयातः कृष्णोऽपि प्रविवे महागुहाम्।
यत्र शेते महावीरयो मुचुकुन्दो नरेश्वरः ॥
कौन थे मचकुंड महाराज?
मचकुंड महाराज इक्ष्वाकु वंश के राजा मान्धाता के पुत्र थे। देवासुरमबत के समय उनकी वीरता से प्रभावित होकर देवराज इन्द्र ने उन्हें अपनी सेना का सेनापति नियुक्त किया था। युद्ध समाप्त होने के बाद उन्होंने देवताओं से विश्राम मांगा। तब देवताओं ने उन्हें शृंगार दिया कि जो भी मचकुंड महाराज को नींद से जगाएगा, वो उनके दर्शन दर्शन से वही राख हो जाएंगे। विष्णु पुराण के पंचम अंश के 23 वें अध्याय के श्लोक संख्या 22 और 23 में इसका उल्लेख है।
स हि देवासुरे युद्धे गतो हत्वा महासुरं।
निद्रारतः सुमहाकालं निद्रां ववरे वरं सुरान् ॥
प्रोक्तश्च देवैः संसुप्तं यस्त्वामुत्थपयिष्यति।
देह्जेनाग्निना सद्यः स तु भस्मीभविष्यति ॥
कालयवन, श्रीकृष्ण और मुचुकुन्द
राक्षस कालयवन जो कि गाग्य ऋषि और राक्षसी माता का पुत्र था। वो म्लेच्छ राज्य का राजा था। वो कंस का मित्र था। श्री कृष्ण की बुआ का बेटा जरासंध जो कि भगवान् कृष्ण को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता था। उसने श्रीकृष्ण को हराने के लिए कालयवन को साथ ले लिया। क्योंकि कालयवन को भगवान् शंकर से युद्ध में अजय रहने का वरदान था। इसलिए भगवान् 18 बार युद्ध करने के बाद भी उसे हरा नहीं पा रहे थे। इसलिए वो रण का मैदान छोड़कर मथुरा से कोसों दूर श्यामाचल पर्वत की गुफा में आ गयें। जो कि धौलपुर में स्थित है। इसी कारण भगवान् श्रीकृष्ण का एक नाम रणछोड़ भी पडा़।
श्रीकृष्ण पीताम्बर पहने हुए थे, अपना पीतांबर गुफा में सो रहे मुचुकुन्द को ओढाकर वो छुप गये। पदचिह्नों का पीछा करते हुए कालयवन गुफा में आ गयें और पीताम्बर ओढकर सो रहे मुचुकुन्द को श्रीकृष्ण समझकर उनका कपड़ा हटाया। नींद में सो रहे मुचुकुन्द उठे और जैसे ही उनकी निगाह कालयवन पर पडीं वो वहीं भस्म हो गया।
श्रीकृष्ण बाहर निकल आये और मुचुकुन्द को पूरा किस्सा सुनाया। अपने बिष्णु रुप के उन्हें दर्शन कराये। चूंकि जाने अंजाने मुचुकुन्द से एक ब्राह्मण का वध हो गया, इसलिए उन्होंने कृष्ण जी से निवारण पूछा। कृष्ण ने उन्हें पांच कुंडी यज्ञ का सुझाव दिया। इस यज्ञ में समस्त देवी देवता पधारे।
वर्तमान स्थिति
यही कुंड आज मचकुंड के नाम से जाना जाता है और वो गुफा जिसमें कालयवन भस्म हुआ था। उसे काली पहाड़ी के नाम से जानी जाती है। जो आज प्रसिद्ध पहाड़ वाले बाबा ( अब्दाल शाह) की दरगाह के सामने स्थित है।
मान्यताएँ और आयोजन
चूंकि इस यज्ञ का आयोजन भाद्रपद माह में ऋषि पंचमी के दिन हुआ था। इसलिए हर साल यहाँ उस दिन दो दिवसीय मेला भरता है। जिसे ‘बलदेव का मेला’ कहा जाता है। आसपास के मुरैना, ग्वालियर, आगरा, मथुरा, दिल्ली और अन्य प्रदेशों से लाखों की संख्या में लोग कुंड में स्नान करने आते हैं।
नवविवाहित जोड़ें यहाँ कलंगी विसर्जित करने आते हैं। तीर्थों का भांजा होने के कारण ऐसा माना जाता है कि चारधाम या किसी अन्य तीर्थ से लौट आने के बाद जब तक आप इस कुंड में स्नान पूजा नहीं करते, आपको तीर्थ का पुण्य नहीं मिलेगा।
हर अमावस्या को यहाँ पूरे मचकुंड की परिक्रमा की की जाती है। हर पूर्णिमा को कुंड की आरती की जाती है। इस दौरान यहाँ मेले और भंडारे भी आयोजित किये जाते हैं।
यहाँ हिन्दू अपने पूर्वजों के स्मृति स्थल(चबूतरे) का निर्माण कराते हैं। पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति यहाँ विशेष पूजा अर्चना करने आते हैं। यहाँ बहुत सारी हवेलियाँ भी स्थित है जिसमें पीढ़ियों से यहाँ के सेवक वर्ग के लोग रहते आयें है।
मचकुंड चूंकि पथरीली पहाडियों से घिरा हुआ है, बावजूद इसके यहाँ औषधीय जडीबुटी पायीं जाती है। जब कभी यहाँ बर्षा होती है तो पानी बहकर मचकुंड में आता है। औषधि युक्त पानी में स्नान करने से चर्मरोग सहित कई रोगों से मुक्ति मिलती है।
मुचुकुन्द की संक्षिप्त विवरण
जैसे ही आप इसके परिसर में प्रवेश करते हैं तो किसी भव्य महल के प्रांगण की अनुमति होती है। लाल पत्थर से बनीं हुईं इमारतों और मंदिरों को देखकर इसके प्राचीनतम इतिहास से साक्षात्कार होता है। 108 मंदिरों की श्रृंखला इस कुंड के चारों ओर स्थित है। जिसमें से आज कुछ ही सही अवस्था में है।
शेर हंट गुरूद्वारा भी अपने विक्रय मार्ग में स्थित है। सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी की बातचीत से स्वादिष्ट समय यहां रुके थे। अपनी तरफ आतें शेर का उन्होंने अपनी तलवारों के एक ही युद्ध से सिर कलम कर दिया था। उसी स्थान पर आज ये गुरुद्वारे स्थित है। जहां मुख्य सिख पर्वों पर कार्यक्रम होता है।
यहां पर एक कमलरूपी बाग भी स्थित है, जिसका ज़िक्र बाबरनामा में भी है। इसके कुंड में कमल के फूल की बड़ी संख्या पाई जाती है, प्रवासी पक्षियों के लिए यह एक उपयुक्त स्थान है।
सरकार द्वारा यहां कुंड में रंगबिरंगे फाउंटेन लगाए गए हैं। साथ ही पैनोरमा गैलरी का भी निर्माण किया गया है जो यहां इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान करता है। लेजर एंड साउंड शो का इवेंट भी यहां रात में आयोजित किया जाता है। सरकार द्वारा पूरे परिसर का जीर्णोद्धार और घाटों का पुनर्निर्माण किया जा रहा है। साथ ही काफी गुड़िया विकसित की जा रही हैं।
प्रमुख मंदिर
लाडली जगमोहन मंदिर, मदन मोहन जी मंदिर, रानी गुरु मंदिर, स्वयंभू महादेव मंदिर, रामजानकी मंदिर, आदि यहाँ के मुख्य मंदिर हैं। तीसरा पुजारी राजवंशानुगत है। सभी मंदिर एवं मुचुकुंद सरकार के देवस्थान विभाग के अधीन हैं।
श्रीकृष्ण के पदश्रृंग भी यहां मिलते हैं। इसके आसपास जंगल और पहाड़ स्थित हैं, यह जीव और वनस्पति हैं।
- यहां के पास ही मंगल भारती हनुमान जी का मान्यता प्राप्त मंदिर भी है। मौनी सिद्ध की गुफा और लोंगपुर पहाड़ी भी यहीं स्थित है। खाज बड़ी माता का मंदिर यहां की एक पहाड़ी पर स्थित है जो कि चर्मरोग और फुंसी फोड़े से प्रभावित लोगों के लिए एक सुसंगत प्राप्त मंदिर है।
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