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    AvatarPuneet Bansal
        • Sadhak (Devotee)
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        ऋषिकेश, उत्तराखंड राज्य में एक प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर, आध्यात्मिक, धार्मिक और योग ध्यान की जगह है। हिमालय एक नवीन पर्वत श्रृंखला है जो भारत को बाकी एशिया से अलग करता है। कुमाऊँ हिमालय के पश्चिमी भाग को ही गढ़वाल हिमालय कहा जाता है। ऋषिकेश को गढ़वाल हिमालय का प्रवेश द्वार माना जाता है।

        माना जाता है कि ऋषि रैभ्य ने ईश्वर के दर्शन के लिए कठोर तपस्या की थी। भगवान् ने प्रसन्न होकर उन्हें ऋषिकेश रूप में दर्शन दिये।हृषिका , भगवान् बिष्णु का एक नाम है जिसका मतलब है इंद्रियाँ और ईश का अर्थ है भगवान् । अर्थात इंद्रियों का भगवान्।

        ऋषिकेश को विश्व में योग और आध्यात्म की राजधानी माना जाता है। उसे यह पहचान फरवरी 1968 में ‘बीटल्स’ के योग गुरु महेश के आश्रम दौरे से मिलीं। बीटल्स ने बहुत सारे गीतों की रचना की और बहुत सारे विदेशी यहाँ से योग सीख कर गये।

        विश्व की सबसे पवित्र नदी गंगा का उद्गम गोमुख से 25 किमी दूर गंगोत्री हिमनद से होता है। वहाँ यह भागीरथी के नाम से जानी जाती है‌। राजा भागीरथ अपने पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त कराने के लिए कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी के कमंडल में विराजमान गंगा को भूलोक पर लाये थे। चूंकि गंगा का बहाव बहुत तेज़ था, इसलिए महादेव ने उन्हें अपनी जटाओं में से होकर फिर धरती पर आने दिया।

        भागीरथी , अलकनंदा से देवप्रयाग में मिलतीं है और फिर गंगा कहलातीं है। जब भागीरथी, अलकनंदा से मिलतीं है तो स्पष्ट दिखता है कि दो विभिन्न धाराओं का मिलन हो रहा है। ऊँचे नीचे पहाडों से निकलकर हरिद्वार से पहले ऋषिकेश में गंगा समतल मैदान में प्रवेश करती है।

        चूंकि हरिद्वार और ऋषिकेश में गंगा नदी के मार्ग में कोई प्रदूषक मौजूद नहीं है। इसलिए यहाँ गंगा का पानी एक दम स्वच्छ व साफ है। सामान्य मौसम में भी ऋषिकेश में गंगा की धाराएँ हिलोरें मारती है, लेकिन बरसात के मौसम में गंगा विकराल रूप ले लेतीं है। इस समय यहाँ जाने की मनाही की जाती है, खासकर कमजोर दिल वालों के लिए।

        ऋषिकेश का जिक्र पुराणों और रामायण में भी है। कहा जाता है कि चूंकि रावण ब्राह्मण था, इसलिए प्रभु श्रीराम भाईयों सहित यहाँ पश्चाताप के लिए आये थे। विकराल गंगा को पार करने के लिए लक्ष्मण जी ने जूट से एक पुल बनाया था, जिसे बाद में पुनर्निर्मित किया गया। इसे ही लक्ष्मण जूला कहा जाता है। 2020 में यह बाढ़ में बह गया इसके स्थान पर अब कांच का पुल बन रहा है। लक्ष्मण जूते की तर्ज पर ही राम जूले को बनाया गया।

        देवासुर संग्राम के समय समुद्र मंथन में हलाहल विष निकला था, जिसकी एक बूंद भी धरती पर गिरती तो विनाश करती। इसलिए सभी ने शिवजी का आह्वान किया। शिवजी उस विष को लेकर हिमालय की तलहटी में आ गयें वो जगह ऋषिकेश के पास ही है। जिस स्थान पर महादेव ने बिषपान किया और उनका कंठ नीला पड़ गया उस जगह नीलकंठ महादेव मन्दिर स्थित है।

        12 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने भी भरत मंदिर बनवाया, जिसकी मूर्ति सालिग्राम भगवान् के एकमात्र पत्थर से बनीं थीं।

        यहाँ एक 13 मंजिला कैलाश मंदिर भी है। शत्रुघ्न घाट और परमार्थ आश्रम घाट भी यहाँ स्थित है।

        गंगा, यमुना और सरस्वती का जहाँ मिलन होता है। उस संगम पर

        त्रिवेणी घाट भी स्थित है। परमार्थ निकेतन आश्रम घाट पर महाआरती का आयोजन होता है।

        शाम होतें ही महाआरती का आयोजन होता है। बनारस और हरिद्वार से अलग ऋषिकेश में होने वाली गंगा आरती अधिक आरामदायक और लीला रहित होती है। आरती गंगा की तरफ मुख करके की जाती है। सात प्रशिक्षित यही के आश्रमों में अध्ययनरत शिष्य बडे़ बडे़ धातु के दीपक लेकर मंत्रोच्चारण के साथ आरती शुरू करते हैं। आरती के समय अग्नि को ही प्रसाद माना जाता है। गंगा दशहरा जैसे महत्वपूर्ण अवसरों पर विशेष आरती का आयोजन किया जाता है‌

        मंत्रोच्चारण, गीत और भजन गाते हुए आरती करने वाले चारों ओर दक्षिणावर्त में दीपक को घुमाते हुए आरती करते हैं। आरती का दृश्य देखते ही बनता है। भक्त भावभिवोर होकर माँ गंगा की आरती में मग्न हो जातें हैं। हिन्दू धर्म के जिस अलौकिक दर्शन की बात हम करते हैं, जिस अक्षुण्ण संस्कृति के कारण हम अलग स्थान रखते हैं, उस हर बात का अहसास हमें होता है। कभी कभी रोंगटे खड़े करने वाले ऐसे क्षण आते हैं कि लगता है कि यह पल बस यही रूक जाये।उस समय वहाँ उपस्थित हर व्यक्ति गौरव का अनुभव करता है।

        मोक्षदायिनी, जीवनदायिनी गंगा का कभी विकराल कभी निश्छल रूप आनंदित करने के साथ ही जन्म मृत्यु के चक्र का स्मरण कराता है। साथ ही सृजन और विनाश की प्रक्रिया को समझाता है। इसी धारा में बहुत लोग पूजा करने और कुछ लोग अपने पूर्वजों के अस्थियाँ आदि को प्रवाह भी करते हैं। लोग भी मां गंगा की आरती करते हैं, नदी में दीप प्रज्ज्वलित कर उसे पानी के बहाव के समानांतर बहा देते हैं। छोटे बच्चे भी फूल आदि प्रवाहित करते हैं।

        शंख की ध्वनि धर्म के मार्ग को निर्देशित करतीं हैं। लोग मस्ती में झूम कर, दोनों हाथ उठाकर प्रभु भक्ति में लीन हो जातें हैं।

         

         

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