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    AvatarPuneet Bansal
        • Sadhak (Devotee)
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        पर्वतराज हिमालय और मेनका की बेटी गंगा, भारतबर्ष के लिए सिर्फ एक नदी नहीं है। अपितु अपनी पवित्रता, दिव्यता और सार्वभौमिकता के कारण वह भारतबर्ष के लोगों के लिए कभी एक माँ का, कभी एक देवी का और भी बहुत से किरदार निभाती आयीं है। हिमालय से शुरू होकर बंगाल की खाड़ी में गिरने तक का इसका सफर न जाने कितनी प्रकियाओं से होकर गुजरता है।

        इक्ष्वाकु वंश के राजा भगीरथ, ऋषि कपिला के श्राप से अपने पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति के लिए कठोर तपस्या करते हैं। और ब्रह्मा जी के कमंडल में बैठी देवी गंगा से निवेदन करते हैं कि वो भूलोक में आकर उनके पूर्वजों का तर्पण करें। गंगा उन्हें बताती है कि उनकी धारा की एक भी बूंद धरती पर प्रलय ला सकतीं है। इसलिए वो देवों के देव शिवजी से प्रार्थना करें कि वो उन्हें अपनी जटाओं से होतें हुए धरती पर लें। तब भगीरथ शिवजी के कहने पर घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न करते हैं और गंगा धरती पर प्रकट होतीं हैं। भगीरथ के पूर्वजों का तर्पण करने के कारण ही हिन्दू धर्मालम्बी अपने प्रियजन की राख अवशेष आदि को गंगा में बहा देते हैं। माना जाता है कि इससे वो सीधे स्वर्ग पहुँचते हैं। और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है‌।महाभारत में भी गंगा का उल्लेख है।

        वर्तमान समय में माना जाता है कि गंगा नदी का उद्गम गोमुख से करीब 25 किमी दूर होता है। यहाँ वो भागीरथी के नाम से जानी जाती है। देवप्रयाग में भागीरथी, अलकनंदा से मिलतीं है और फिर गंगा नाम से जानी जाती है। उथले पुथले पहाडों से गुजरने के बाद ऋषिकेश में गंगा लगभग समतल मैदान में प्रवेश करती है। गंगा की दिव्यता और पवित्रता का अदांजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके किनारे बसा प्रत्येक नगर या तो तीर्थ स्थल है। या फिर ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण या व्यापारिक दृष्टि से।

        गंगा यूँ ही नहीं भारत की राष्ट्रीय नदी है। 2500 किमी से अधिक दूरी तय करने वाली गंगा करोड़ों लोगों की आस्था तो है ही, लेकिन साथ ही वो करोड़ों लोगों के लिए अन्नपूर्णा हैं। गंगा बेसिन विश्व के सबसे उपजाऊ बेसिनों में से एक है। गंगा अपने बहाव के साथ गाद मिट्टी भी लाती है जो अत्यंत उपजाऊ होने के कारण फसलों के लिए अच्छी रहतीं है। खाद्य पदार्थों के उत्पादन और प्रसंस्करण के कारण ये लाखों उघोगों की स्थली है। भारत के बड़ी आबादी वाले शहर जैसे पटना, कानपुर, वाराणसी, हरिद्वार, ऋषिकेश इसके तट पर ही स्थित है। अपने इन्हीं गुणों के कारण गंगा एक देवी और एक माँ के समान है।

        गंगा जहाँ से बहना शुरू करतीं हैं, वहाँ से लेकर अपने अंतिम पड़ाव तक ये बहुत सारी धाराओं में बंटती है। बहुत सारी नदियाँ इसकी सहायक नदी है। इसी कारण से ही यह बहुत सारे स्थानों पर अलग अलग नामों से पुकारी जाती है‌। लेकिन वृहद रुप में इसे गंगा कहा जाता है।

        हिन्दू धर्म में आरती को प्रसाद के समान माना जाता है। यह एक भक्त का अपने आराध्य के लिए एक भावपूर्ण अंजलि है। यह एक बहुत आध्यात्मिक और धार्मिक अनुष्ठान है। रुई की एक बाती बनाकर उसे धातु या मिट्टी के दीपक में रखते हैं। फिर उसमें घी या तेल डालकर अग्नि प्रज्ज्वलित करते हैं।

        गंगा की आरती का आयोजन ऋषिकेश, हरिद्वार और वाराणसी में किया जाता है। विशेष अवसर जैसे गंगा दशहरा जैसे मौकों पर विशेष आरती का आयोजन किया जाता है। हर जगह कि आरती में एक दूसरे से कुछ अंतर है‌। लेकिन एक जिस भाव में कभी अंतर नहीं आता वो है भक्ति। भक्त चाहे किसी भी स्थान पर आरती ग्रहण करें, उसकी अपनी देवी स्वरूपा गंगा माँ के लिए आस्था वही रहतीं है।

        आरती सदैव सरिता की ओर मुंह करके की जाती है। प्रशिक्षित पंडितों या आश्रम के प्रशिक्षित शिष्यो द्धारा आरती सम्पन्न करायी जाती है। दीपक को दक्षिणावर्त घुमाया जाता है। गर्मी, बरसात, सर्दी, आंधी और तूफान चाहे जितने विकट क्यों न हो, यह आरती सदियों से हो रही है।

        हरिद्वार में होने वाली आरती हर की पौड़ी पर होती है, शायद यह वाराणसी जितनी भव्य ना हो, लेकिन यह आरती आपसी मेलजोल बढाने के लिए सबसे अनुकूल है। हरिद्वार उन जगह में से एक है, जहाँ अमृत की बूंद गिरी थी। इसलिए यहाँ कुंभ का आयोजन होता है।

        बहुत ज्यादा नौटंकी से रहित ऋषिकेश में होने वाली गंगा आरती परमार्थ निकेतन आश्रम घाट पर की जाती है। यह वह स्थान है जहाँ आरती पंडितों द्बारा सम्पन्न ना कराकर प्रशिक्षु द्बारा की जाती है।

        बनारस में होने वाली गंगा आरती दशाश्वमेध घाट पर सायं के समय की जाती है। अन्य सभी स्थानों पर होने वाली आरती से अलग यहाँ की आरती अधिक प्रसिद्ध है।

        घाट किनारे होने वाले दाह संस्कार हमें जीवन मृत्यु के चक्र के बारे में सीख देता है और हमे सच्च से सामना कराता है‌।

        हाथों में जलने की चिंता करें बिना दीपक लेकर भक्त अपनी आस्था को और बलवती देते हैं। आरती सम्पन्न होने के बाद हर भक्त आरती लेने के लिए लालायित रहता है। शंख या कमंडल में भरे पवित्र जल की बौछार खुद पर पड़ना भक्त सौभाग्य मानते हैं

        क्रमिक मंत्रोच्चारण, हाथ में पुष्प, दीपक के साथ बजती घंटियाँ, आग की लपटें, भजन, प्रार्थना, हवन, लाल चंदन की महक, झांझर उन लोगों के लिए एक जबाब है जो इस सबको कोरा आडम्बर मानते हैं।  गंगा माँ अपने बच्चों के लिए इतना कुछ करतीं हैं, बिना किसी भेदभाव के। उसके लिए इतना करना भी बहुत सारे भक्तों को कम लगता है। आरती के अंत में होने वाला शंखनाद वर्तमान समय में भी हिन्दू धर्म की प्रासंगिकता, इसके अनंत इतिहास को बताने के लिए काफी है‌।

         

         

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