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    AvatarPuneet Bansal
        • Sadhak (Devotee)
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        <p style=”text-align: left;”>तुलसी, शायद ही ऐसा कोई हिन्दू घर हो, जहाँ तुलसी का पौधा न मिले। तुलसी के पौधे का जितना आध्यात्मिक महत्व है, उतना ही पौराणिक और आयुर्वेदिक महत्व भी है। जिस घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगा होता है, उस घर के समस्त वास्तु दोष समाप्त हो जातें हैं। वास्तु दोष, अर्थात घर के निर्माण में कौनसा स्थान किस दिशा में हो, किसी कारण से ऐसा न हो पाये। तुलसी के पौधे के प्रत्येक भाग का अपना महत्व है।</p>
        <p style=”text-align: left;”>तुलसी, जिसका एक नाम वृंदा भी है, की पूजा सुबह और शाम नियमित रूप से की जाती है। माना जाता है कि जिस घर में तुलसी होती है और उसकी नियम बद्ब पूजा की जाती है। उस घर के निवासियों पर भगवान् श्री हरि बिष्णु और माता लक्ष्मी की सीधी कृपा होती है। हिंदू धर्म की बैष्णव शाखा और कृष्ण भक्तों में तुलसी का विशेष महत्व है। भगवान् बिष्णु और मुरली मनोहर के भोग में अगर तुलसी का पत्ता न रखा जाये तो उस भोग को पूर्ण नहीं माना जाता। इस संप्रदाय के लोग‌ गले में तुलसी की माला पहनते है। साथ ही तुलसी की जप माला वो जप आदि में उपयोग करते हैं। जिनका निर्माण तुलसी के तने या जड़ों से होता है। तुलसी के ऊपरी भाग में वेदों और तने में ब्रह्मा जी का निवास माना गया है।</p>
        <p style=”text-align: left;”>तुलसी का पौधा आयुर्वेद में भी विशेष महत्व रखता है। वात, कफ, ज्वर या अन्य औषधियों में तुलसी का उपयोग होता है।</p>
        <p style=”text-align: left;”>तुलसी में मौजूद औषधीय गुणों को विज्ञान ने भी मान्यता प्रदान की है। मनुष्य की मृत्यु के बाद उसे गंगा जल में तुलसी डालकर पिलाया जाता है। ऐसा विश्वास है कि ऐसा करने से मनुष्य को बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है। हरे या बैंगनी वर्ण की पत्तियों वाला तुलसी का पौधा कभी भी सूखा नही होना चाहिए। साथ ही हरे भरे पौधा को किसी तरह से नुकसान पहुंचाना वर्जित है।</p>
        <p style=”text-align: left;”>तूलसी का पवित्र पौधा जिस घर आंगन में होता है, वहाँ की आबोहवा में हमेशा बिष्णु भगवान् का वास होता है, लेकिन तुलसी का इतना महत्व आखिर क्यों है?</p>
        <p style=”text-align: left;”>पुराणों में बताये अनुसार एक बार महादेव किसी बात पर क्रोधित हो जातें हैं। चूंकि उनका क्रोधी सृष्टि में प्रलय ला सकता था, इसलिए उस क्रोधाग्नि को समुद्र में फेंक दिया। उस क्रोधाग्नि ने एक बालक का रूप ले लिया।दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने उसका नाम जालंधर रखा।ब्रह्मा जी के कहने पर समुद्र ने उसका लालन पालन किया। बड़े होकर उसने घोर तपस्या की, और ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर युद्ध में अजेय रहने का वर मांग लिया।उसे असुर राज बना दिया गया।उसके बाद दैत्य जालंधर ने तीनों लोकों में आहाकार मचा दिया। अजेय होने के कारण उसे कोई हरा न पाया।</p>
        <p style=”text-align: left;”>उसने कालनेमि नामक राक्षस की बेटी वृंदा से विवाह किया। वृंदा एक राक्षस की संतान होतें हुए भी भगवान् बिष्णु की अनन्य उपासक थीं। वह एक पतिव्रता नारी थीं। उसका सतीत्व ही जालंधर के अजेय रहने का कारण था। कहीं कहीं ब्रह्मा जी के द्धारा जालंधर की तपस्या से प्रसन्न होकर बिष्णु कवच देने का भी उल्लेख मिलता है।</p>
        <p style=”text-align: left;”>नारद मुनि के द्धारा माता लक्ष्मी पार्वती की सुंदरता के बखान सुन पहले वो लक्ष्मी जी के पास जाता है। बिष्णु पत्नी रमा उसे बताती है कि चूंकि वो समुद्र से अवतरित हैं और जालंधर को भी समुद्र ने ही पाला है। इसलिए वो और रमा भाई बहन हुए‌। उनकी बात उसे उचित लगतीं है। जालंधर वहाँ से कैलाश की ओर प्रस्थान करता है और माता उमा के सामने भी समान प्रस्ताव रखता है। जालंधर के प्रस्ताव को सुन पार्वती नाराज हो जाती है। पहले माता काली और फिर भगवान् शिव भयंकर युद्ब करने के बाद भी जालंधर को नहीं हरा पाते हैं। तब देवताओं की प्रार्थना पर भगवान् बिष्णु वृंदा के पास जालंधर का रुप धर जातें हैं और उससे पत्नी जैसा व्यवहार करते हैं। उनके वृंदा को स्पर्श करते ही उसका सतीत्व नष्ट हो जाता है और युद्ब में जालंधर मारा जाता है।</p>
        <p style=”text-align: left;”>जब वृंदा को उसके साथ हुए छल की और अपने पति की मृत्यु कीक्ष जानकारी प्राप्त होती है। तो वह शोक में चलीं जाती है और भगवान् बिष्णु को श्राप देतीं हैं कि उन्हें भी जीवनसाथी का वियोग सहना होगा। वो उन्हें पत्थर बन जाने का श्राप देतीं हैं ।</p>
        <p style=”text-align: left;”>भगवान् बिष्णु उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान देते हैं कि समय के अंत तक भगवान् बिष्णु के साथ उसकी पूजा की जायेंगी। वृंदा अपने पति की चिता पर बैठकर प्राण त्याग देती है। उसी राख से तुलसी का पौधा उत्पन्न होता है।</p>
        <p style=”text-align: left;”>कुछ जगह बताया जाता है कि वृंदा के पति वियोग में रोने से गंडकी नदी निकलतीं है। जिसमें सालिग्राम पत्थर पाये जाते हैं।</p>
        <p style=”text-align: left;”>कहीं समान कथा के साथ शंखचूड नामक राक्षस का उल्लेख जालंधर के स्थान पर मिलता है।</p>
        <p style=”text-align: left;”>बृज में यह भी मान्यता है कि इसी वृंदा के नाम पर ही वृंदावन नगर का नाम पड़ा है।</p>
        <p style=”text-align: left;”>हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देव उठनी एकादशी को तुलसी सालिग्राम का विवाह पूरे विधि विधान से किया जाता है। वृंदा को लक्ष्मी का ही अवतार माना जाता है। और चूंकि चतुर्मास के शयन के बाद भगवान् बिष्णु उठते हैं। इसलिए उनका विवाह कर ही विवाहादि मांगलिक कार्य शुरू होतें हैं।</p>
        <p style=”text-align: left;”></p>
        <p style=”text-align: left;”></p>

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