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April 7, 2024 at 10:56 pm #2012Up::1
हिन्दू धर्म में 33 कोटि देवी देवता माने गये हैं। हर एक की अपनी कुछ विशेषताएँ हैं, अपना अलग वाहन है, अपना अलग शस्त्र है। हर किसी के जन्म की अलग अलग कथाएँ हैं। प्रत्येक का अपना अलग कार्य है। लेकिन अलग होते हुए भी सभी का एक ही उद्देश्य है, लोक कल्याण।
कोई भाग्य का देवता है, कोई शक्ति का, कोई बुद्धि का, कोई ज्ञान का, कोई सामर्थ्य का, कोई न्याय का, कोई धन का
लेकिन बावजूद इसके हमेशा एक बहस छिड़ी रहतीं है कि असल में सबसे अधिक ताकतवर कौन है, कौन है जो देवताओं में सर्वेसर्वा है, जो सभी में ईष्ट है।
गणेश जी सभी देवताओं में प्रथम पूजनीय है, कोई भी शुभ कार्य में सबसे पहले उनकी पूजा होती है।
हिन्दू धर्म में त्रिदेव का अत्यधिक महत्व है। त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, बिष्णु और महादेव। यह तीनों शासन की धुरी हैं।
सृष्टि के पालनहार श्री हरि बिष्णु बैकुंठ में निवास करते हैं। इन्हें सृष्टि का पालनहार माना जाता है। यह अधिकांशतः शेषनाग पर और कभी कभी गरूड़ पर भी सवारी करते हैं। लक्ष्मी माता इनकी जीवनसाथी है। इनकी नाभि से सरोज का फूल उत्पन्न होता है, जिस पर की ब्रह्मा जी निवास करते हैं। इनके चार हाथों में कमल, गदा, शंख और सुदर्शन चक्र है। इन्होंने इंद्र को संचालन सौंपा है। क्योंकि ये दुर्जनों के संहारक है और सृष्टि के पालक है। इसलिए असुर इन्हें अपना दुश्मन मानते हैं। इन्होंने तो कभी सीधा दुर्जनों से युद्ब नहीं किया, लेकिन इन्होंने अनेक अवतार लिये। श्रीराम, श्रीकृष्ण, परशुराम, नृसिंह, मोहिनी आदि इन्हीं के अवतार है। जिन्होंने अपने अवतरण के बाद बुराई को खत्म कर धर्म की स्थापना की है।
श्रीकृष्ण भगवान् बिष्णु के ही अवतार है। उन्होंने देवकी और वासुदेव के यहाँ जन्म लिया। लेकिन पालन पोषण नंद और यशोदा के हुआ। इन्होंने अपने अत्याचारी मामा कंस का वध किया। सोलह कलाओं में निपुण कृष्ण यादवो के राजा थे।
महाभारत के युद्घ में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका थीं। वही इन्होंने अर्जुन को गीता सुनाकर उसे उसका सच्चा धर्म बतलाया और अपने विशाल रूप के दर्शन कराये। इन्होंने बालपन में बहुत शरारत की, रास रचाये। रूकमणी से विवाह कर ये द्वारिका रहने लगे। इन्होंने बहुत सारे असुरों का संहार किया। अपने जीवनकाल में नाना प्रकार के धर्म स्थापना के लिए कार्य किया। लेकिन ये अपने कुल में एकता न रख पाये। एक शिकारी के धोखे से लगे तीर से वापस अपने धाम लौट गयें।
संहारक का अर्थ यह नहीं है कि वो विनाश करते हैं। शिवजी कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। सांसारिक मोहमाया से दूर वो वैराग्य जीवन जीते हैं। बाघ की खाल उनके वस्त्र हैं। वो बाघ की खाल पर ही बैठते हैं। नंदी उनका वाहन है। उनके गले में सर्प है, माथे पर चंद्रमा है, जटाओं में गंगा विद्यमान है। वो समुद्र मंथन में निकले बिष को पी जातें हैं। गंगा को अपनीं जटाओं में धारण करते हैं।इनके हाथ में त्रिशूल है। पार्वती से विवाह कर वो सांसारिक जीवन में प्रवेश करते हैं। उनका पुत्र देवताओं का सेनापति बन असुर का संहार करता है। दूसरा पुत्र गणेश देवताओं में ईष्ट है। महादेव मृत्यु के देवता है, काल को टालने वाले है। इसलिए इन्हें महाकाल भी कहा जाता है। इनका तीसरा नेत्र जब खुलता है तो सृष्टि में प्रलय आता है। त्रिदेवों में ये सबसे अधिक पूज्यनीय है। इनके लिंग रूप की पूजा की जाती है
लेकिन बावजूद इस सब के अगर हम वेदों की ओर देखें, उनका अध्ययन करें, तो हम पायेंगे कि त्रिदेवों में से कोई भी सबसे शक्तिशाली ना होकर इंद्र सबसे शक्तिशाली भगवान् है। वो स्वर्ग लोक के राजा है। अग्नि देव, पवन देवता, वरुण, गुरु बृहस्पति और भी सभी देवता उनके दरबार में बैठते हैं। इंद्र राजा की भांति सभी को आदेश देते हैं, जिनका पालन करना सभी देवताओं के लिए जरूरी है। वो ऐरावत नामक गज की सवारी करते हैं। असुरों से होने वाली लड़ाईयों में वो देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। वो बर्षा के देवता है। आंधी तूफान के लिए वो ही उतरदायी है। जब कोई समस्या उनके आपे से बहार हो जाती है तो वो त्रिदेव में से किसी एक या सभी के पास जाकर मार्गदर्शन और सहायता मांगते है। त्रिदेव में से कोई भी या अन्य उनके फैसलों पर सवाल नहीं करता, लेकिन हमें कुछ जगह असहमति भी देखने को मिलती है। वो ऋषि दधीचि की अस्थियों से बने वज्र को धारण किये हुए हैं, जिससे वो असुरों का संहार करते हैं। बिष्णु जी ने ही उन्हें देवराज नियुक्त किया है।
लेकिन इनकी भी पूजा आदि का अधिक उल्लेख नहीं मिलता है। विशेषकर गोवर्धन पर्वत की पूजा श्रीकृष्ण के करने के बाद।
धारावाहिकों में जिस तरह इन्हें एक अय्याश और घमंडी देवता बताया जाता है, कायर बताया गया है। यह सब कपोल कल्पना मात्र है। प्राचीन निर्माण में इनके कुछ मंदिर भी मिलतें है।
अतः हम देखते हैं कि वेदो में त्रिदेव सबसे शक्तिशाली न होकर देवराज इंद्र अधिक शक्तिशाली देवता है।
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